मैं ऐसा क्यूँ हूँ (Schizoid Personality Disorder)
सुबह सुबह चाय की चुस्कियों के साथ मैंने अखबार टटोलना शुरू ही किया था कि अचानक फोन की घंटी बजी ट्रिंग ट्रिंग…. ट्रिंग ट्रिंग…. मन मसोसकर मैंने फोन उठाया तो मीरा एकदम उत्तेजित अंदाज़ में , ” dear !!!! you are not only a good doc but also a true friend , you saved my marriage.” मीरा बेहद खुश थीं, मैंने भी उसे ढेर सारी बधाइयां दी और मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया!
फोन रखते ही मेरे मस्तिष्क में विचारों का चक्रव्यूह तैयार होने लगा, करीब दो वर्षों पूर्व भी इसी तरह फोन की घंटी बजी थीं, ” रुपाली, मीरा बोल रही हूँ,उसकी रुआँसी आवाज़ में एक भयानक दर्द था, I can’t continue with this man anymore, I am fed up now, ” कहकर वह फूट- फूट कर रोने लगी, मैंने उसे राकेश( मीरा का पति) को बस एक बार क्लीनिक में लेकर आने की सलाह दी और मदद करने का आश्वासन दिया! सुनकर तो मैं भी अचरज में पड़ गई, मीरा!!!! मेरे बचपन की सहेली, हर चीज में अव्वल, महत्वाकांशी, मिलनसार, जिंदादिल व्यक्तिमत्व जो एक बार कुछ करने की ठान ले, तो पीछे हटनेवालो में से नहीं थीं, और राकेश एक होनहार, सफल उद्योगपति! दोनों ही मिलकर , अपने मेहनत एवं संघर्ष के दम पर एक बड़ी कंपनी को चला रहे थे !
जब दोनों मुझसे मिलने आये तो मेरे सामने ही शब्दों की गोली बारी चालू हो गई,
मीरा-” Rakesh, what do you think of yourself? You never understood me, are you a moron??? enough is enough now”
राकेश-Mira, you never understood me, मैं ऐसा ही हूँ, क्यों हूँ????, I dont know, l have never done anything purposefully, ……
दोनों को किसी तरह चुप करवाने में मुझे नानी याद आ गई (जैसा कि हर marital therapy में होता है) पूरी बात सुनने के बाद आखिरकार मैं समझ गई कि मांजरा क्या है,??
मीरा राकेश की उदासीन स्वभाव ( indifference to everything) को लेकर बेहद परेशान थीं! राकेश ज्यादातर अकेला रहना पसंद करता, उसके दोस्त भी बहुत कम थे! वो भीड़ में वक्त जाया नहीं करता! यूँह तो राकेश रात दिन कठोर परिश्रम का आदि था परन्तु अपने मितभाषी व्यक्तिमत्व ,भावनाओं को प्रदर्शित करने और नई नई चीजों में आनंद अनुभव करने की असमर्थता के कारण वो पूरी तरह से अकेला (LONER) बन चूका था! मीरा भी बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं, सभी उसका लोहा मानते, पर फ़िर भी मीरा को इस बात का अफसोस था कि राकेश कभी भी उसकी कोई तारीफ नहीं करता, वो चाहती कि राकेश सिर्फ एक बार अपने जज्बातों को प्रदर्शित करे लेकिन काम में मश्गुल राकेश उसके लिए वक्त ही नहीं निकाल पाता, चूँकि, राकेश अपने स्वभाव से भलिभाँति परिचित था, पर उसे कोई गलती महसूस नही होती, उसका कहना था कि मीरा के अपेक्षायें ही उसे दुःख देती है, मैं मीरा की व्यथा को अच्छी तरह समझ गई थी( being psychiatrist, you have to be empathetic towards your patients) भगवान बुद्ध ने भी तो यही कहा है, आशा ही आपके दुःख को जन्म देती हैं लेकिन क्या हाड़ -मास और भावनाओं का पुतला जो पाँच तत्त्वों से बना हैं और अंत में उन्हीमे विलिन हो जाएगा, एक साधारण मनुष्य बिना उम्मीद, बिना आकांक्षा के जी सकता हैं?? बिल्कुल नहीं, कदापि नहीं! कुल मिलाकर यह निश्चित था कि राकेश SCHIZOID PERSONALITY DISORDER का शिकार था! राकेश के इस प्रकार के बर्ताव से मीरा बौखला उठती ,रात – दिन तनाव से घिरी रहती!
आखिरकार ,राकेश को किसी तरह counselling के लिए मनाया गया! पहले तो वह नहीं माना फिर धीरे- धीरे अपनी कमियों को स्विकार करने लगा! मीरा ने भी राकेश का साथ नही छोड़ा!
It is always important to provide guidance and support without giving direct advice to such patients. Treatment remains combination of psychotherapy and pharmacotherapy. Regular treatment with counselling sessions for two years really worked for Rakesh.
परसों ही अखबार की हैडलाइन थीं, commmunication problem comes out as the most important cause of divorces rather than sexual infidelity. The rate of divorces has become doubled in the last decade. सच ही तो है , तलाक की मात्रा पेट्रोल के भाव की तरह धड़ल्ले से बढ़ती जा रही हैं! जरूरत है अपने व्यक्तिमत्व दोषों को ढूँढने की, अपनी व्यस्तता में से चंद लम्हें ,अपने आप के साथ और अपनों के साथ गुजारने की ,अपने मन के गुबार को बाहर निकालने की और तो और समय रहते ही बेझिझक प्रोफेशनल हेल्प लेने की वरना कहतें हैं ना..
रहीमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटकाय,
टूटे से फिर ना जुड़े,
जुड़े ,गाँठ पड़ी जाय………..
Dr. Rupali Karwa Choudhary, Psychiatrist
Samyak Rehabilitation Center, Pune